क्षत्रपति शिवाजी महाराज

Spread the love

#क्षत्रपतिशिवाजी
ब्रह्ममुहूर्त में पश्चिमी घाट में अवस्थित क्षत्रपति शिवाजी के एक छोटे-से किले के खंडहर पर बैठा मन स्वतः चिंतन में डूब गया। यह जगह महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले में पड़ता है।यहाँ महाराष्ट्र और कर्नाटक की सीमा मिलती है।इतिहास की किताबों में इस तरह के अनेक किले बहुत स्थान नहीं बना सके। कहा जाता है कि शिवाजी ने सौ से ज्यादा किले बनवाए और अनेक किलों पर कब्जा किया जो उनके कुशल युद्धनीति और अद्भुत सोच का प्रतीक है।
शिवाजी सोलह साल की उम्र से ही प्रतिरोध के प्रतीक बन चुके थे। उन्होंने कमजोर पड़ते जा रहे बीजापुर के आदिलशाह वंश और मुगलों के बीच अपना स्थान बनाया और मराठा साम्राज्य की नींव डाली। 1674 ईस्वी में राज्याभिषेक से पूर्व ही वे इस क्षेत्र में निर्णायक स्थान बना चुके थे। मुगल वंश के अंतिम प्रभावी शासक औरंगजेब को इन्होंने इस इलाके में कभी चैन से रहने नहीं दिया और उसके दक्षिण विजय के मार्ग में हमेशा एक दीवार की तरह बने रहे। हालाँकि कई बार वे औरंगज़ेब से मात भी खाए पर निर्णायक विजय उन्हीं की रही। शिवाजी के इन शानदार किलों में अनेक किले छोटे-छोटे देखभाल-चौकी (Observation Post) की तरह थे जिनसे मुगलों की सेना के गतिविधियों पर नजर रखी जाती थी। इन किलों में पानी-संग्रहण, भोजन की व्यवस्था, गुप्त रास्ते और वह सब कुछ मौजूद था जो सैन्य अभियानों के लिए जरुरी होता है। हर किले में मंदिर थे जिनके अवशेष मौजूद हैं और आस-पास के गाँवों के लोग आज भी वहाँ पूजा-अर्चना करने आते हैं।यह मुगलों के विरुद्ध सबसे बड़ा प्रतिरोध था। जब अत्याचारी और धर्मांध औरंगजेब पूरे भारत को अपने कब्ज़े में लेना चाहता था उस समय शिवाजी के रणनीतिक प्रतिरोध ने बहुत हद तक इन स्थानों को अत्याचारों से सुरक्षित रखा और स्थानीय लोगों में प्रतिरोध की सांस्कृतिक और क्रांतिकारी चेतना को भी जगाए रखा।
शिवाजी ने राज्याभिषेक के बाद कौटिल्य की नीतियों के आधार पर राजकाज प्रारंभ किया। अपने दरबार में हिंदू परम्पराओं को फिर से जीवित किया। राज्य के प्रशासन को व्यवस्थित किया। चौथ और सरदेशमुखी आदि कर लगाए। न्याय व्यवस्था को दुरुस्त किया।चरित्र की दृढ़ता पर विशेष बल दिया। स्त्रियों, बच्चों और बुजुर्गों के प्रति सहिष्णुता का रुख रखा। इसके ठीक विपरीत दुष्टों के प्रति निर्मम रहे। अफ़ज़ल खान ने धोखे से उन्हें मारना चाहा तो उसका बुद्धिमानी से वध कर दिया। शिवाजी ने युद्ध के कई तरीकों का ईजाद किया जिसमें से एक गुरिल्ला युद्ध पद्धति भी है। इस पद्धति का उन्होंने व्यापक उपयोग किया। मात्र 350 सैनिकों के साथ शाइस्ता खान के लाखों सैनिकों के शिविर पर हमला करके उसे भागने पर मजबूर कर दिया और इस क्रम में उसे अपनी चार उँगलियाँ भी गँवानी पड़ी। सिद्धांत और व्यवहार दोनों में ही राष्ट्र और धर्म की रक्षा हेतू वे किसी भी सीमा तक जा सकते थे। यह युवाओं के लिए एक प्रेरणा है।
सच कहा जाए तो बिना राष्ट्रीय और सांस्कृतिक चेतना के किसी भी देश का भविष्य सुरक्षित नहीं रह सकता। भारत के संदर्भ में भी यही सत्य है।
इति !

Ministry of Home Affairs ,
Government of India

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *