‘कंक्रीट’ दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक

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कार्बन उत्सर्जन को कम करने की दिशा में ‘ग्रीन सीमेंट’ आशा की किरण है। इससे हम काफी हद तक उत्सर्जन को कम कर सकते हैं। नए उत्पादकों द्वारा कचरे और रिसाइकल योग्य पदार्थ से ग्रीन सीमेंट बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। वहीं, पारंपरिक निर्माताओं का कहना है कि उन्हें अपनी मौजूदा मशीनरी का आधुनिकीकरण करने में समय लगेगा। कनाडा में कार्बनक्योर इस बात की खोज कर रहा है कि तरलीकृत सीओ-2 को कंक्रीट में कैसे मिलाया जाए और इसका भंडारण कैसे किया जाए। जीसीसीए के अनुसार, ब्रिटेन

अगर हम धरती पर कंक्रीट को एक देश मान लें तो यह कार्बन उत्सर्जन के मामले में दुनिया में तीसरे स्थान पर है। इस लिहाज से पहले स्थान पर चीन है जबकि दूसरा नंबर अमेरिका का है। गौर करने वाली बात है कि दुनिया के हाउसिंग प्रोजेक्ट में अहम भूमिका निभाने वाला कंक्रीट अकेले यूरोपीय संघ या भारत से अधिक कार्बन उत्सर्जन करता है।

ग्लोबल सीमेंट एंड कंक्रीट एसोसिएशन (जीसीसीए) के मुताबिक, दुनिया में 14 अरब क्यूबिक मीटर कंक्रीट का उत्पादन हर वर्ष होता है। वहीं, 150 टन सीमेंट की खपत हर सेकंड होती है। एक रिपोर्ट में बताया गया है कि वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में सीमेंट उत्पादन का सात फीसदी हिस्सेदारी है। इसी में इस बात की भी जानकारी दी गई है कि सीमेंट उद्योग उड्डयन क्षेत्र के मुकाबले तीन गुना अधिक कार्बन उत्सर्जन करता है। जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) ने कंक्रीट की बढ़ती खपत को लेकर दुनिया को आगाह किया है। क्योंकि, कंक्रीट को दुनिया में सबसे ज्यादा इस्तेमाल करने वाली चीज बताया गया है। चिंता की बात यह है कि संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि 2050 तक दुनिया के बुनियादी ढांचे के तीन चौथाई हिस्से का निर्माण अभी बाकी है। इससे अनुमान लगाया जाता है कि अभी कंक्रीट के प्रयोग में लगातार बढ़ोतरी होगी।

क्या होता है कंक्रीटसीमेंट, रेत, रोड़ी एवं पानी के मिश्रण को कंक्रीट कहा जाता है। सीमेंट इसका प्रमुख घटक है। क्योंकि यही बालू और रोड़ी को एक दूसरे से जोड़े रहता है। शहरीकरण बढ़ने की वजह से पिछले एक दशक में इसकी खपत में बेतहाश वृद्धि दर्ज की गई है। खासतौर पर एशिया और अफ्रीका के देशों में।

कैसे कार्बन उत्सर्जन करता है सीमेंटसीमेंट निर्माण का मुख्य तत्व क्लिंकर है। सबसे अधिक सीओ-2 का उत्सर्जन क्लिंकर बनाने की प्रक्रिया से होता है। क्योंकि, इसे मिट्टी और चूना पत्थर को पिसकर एक बड़ी भट्टी में जलाने के बाद बनाया जाता है। 1450 डिग्री सेल्सियस तक गर्म किया जाता है। इसी दौरान सीओ-2 उत्पन्न होता है। एक टन सीमेंट बनाने में लगभग एक टन सीओ-2 का उत्पादन होता है। सीमेंट निर्माण की यह रासायनिक प्रक्रिया लगभग 200 वर्षों से चली आ रही है। यह इस क्षेत्र के 70 प्रतिशत उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है। शेष 30 प्रतिशत भट्टियों को जलाने के लिए उपयोग की जाने वाली ईंधन से आती है।

कैसे कार्बन उत्सर्जन में कमी ला सकता है कंक्रीट उद्योगसीमेंट बनाने की प्रक्रिया में बदलाव करना होगा। जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कम करने के साथ-साथ प्रक्रिया में सुधार पर भी ध्यान देना होगा। हाइड्रोकार्बन को जैव ईंधन के साथ बदलना होगा।

अमेरिका, कनाडा इस दिशा में कदम उठा रहा है। चाइना नेशनल बिल्डिंग मटेरियल कंपनी ने भी कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने का वादा किया है। चैटम हाउस के मुताबिक, पिछले कुछ दशकों में नए संयंत्रों की ऊर्जा कुशलता में सुधार और जीवाश्म ईंधन की बजाय अपशिष्ट सामग्री जलाने से प्रति टन उत्पादन में औसत सीओ-2 उत्सर्जन 18 घट गया है।

2050 तक कार्बन तटस्थ होने की प्रतिबद्धतादुनिया की सीमेंट उत्पादन क्षमता के 35 का प्रतिनिधित्व करने वाली एसोसिएशन जीसीसीए के चीफ एग्जिक्यूटिव बेंजामिन स्पॉर्टन के अनुसार, दुनिया के कंक्रीट उद्योग का कहना है कि वह 2050 तक कार्बन तटस्थ होना चाहता है। अक्तूबर में उसने 2030 तक अपने उत्सर्जन को अतिरिक्त 25 प्रतिशत कम करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। यह दशक के दौरान लगभग 5 अरब टन सीओ-2 की बचत करेगा।

 

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